“भारत की शिक्षा व्यवस्था कैसी होनी चाहिए? सरस्वती विद्या मंदिर के कार्यक्रम में भागवत ने साझा किए विचार”


भारत की शिक्षा व्यवस्था पर मोहन भागवत के विचार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने सरस्वती विद्या मंदिर, वीरपुर सुपौल के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र के कई कार्यकर्ता और नागरिक मौजूद रहे। उन्होंने कहा कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो पूरे विश्व में सुख और शांति की राह दिखा सके।
शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य निर्माण
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में शिक्षा को व्यापार का रूप दे दिया गया है, लेकिन भारत में शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ धन अर्जित करना नहीं होना चाहिए। शिक्षा केवल जीविका के लिए नहीं होती, बल्कि यह व्यक्ति को एक बेहतर इंसान बनाने का माध्यम है। यदि शिक्षा केवल पेट भरने तक सीमित रह जाए, तो इसका कोई विशेष महत्व नहीं रह जाता।
शिक्षा में अपनेपन और लोक कल्याण की भावना
भागवत ने कहा कि विद्या भारती के 21,000 से अधिक विद्यालय देशभर में संचालित हैं, जो विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि शिक्षा ऐसी हो, जो स्वार्थ की भावना को समाप्त कर अपनेपन और राष्ट्रभावना को मजबूत करे।
त्याग और समाजसेवा को प्राथमिकता
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में हमेशा त्याग को महत्व दिया गया है। धन-संपत्ति से अधिक समाज के लिए योगदान देने वालों को याद किया जाता है। उन्होंने दशरथ मांझी का उदाहरण देते हुए बताया कि समाज सेवा के लिए किए गए उनके प्रयासों को आज भी सराहा जाता है।
भारत की शिक्षा प्रणाली का व्यापक प्रभाव
भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि भारत की शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए, जो न केवल देश के नागरिकों के विकास में सहायक हो, बल्कि पूरी दुनिया को शांति और प्रगति का मार्ग दिखा सके।