इलाहाबाद उच्च न्यायालय | क्या अवैध कॉल की रिकॉर्डिंग साक्ष्य के रूप में गिनी जाती है? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने टिप्पणी की और फैसला सुनाया.

लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court ) की लखनऊ पीठ (Lucknow bench) ने 30 अगस्त को एक मामले की सुनवाई की। इस दौरान अदालत ने कहा कि अब रिकॉर्ड की गई फोन की बात चीत को सबूत के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है। चाहे वह अवैध रूप से ही रिकॉर्ड क्यों न किया गया हो। अदालत ने ये फैसला दाखिल एक पुनीरक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा।
फोन रिकॉर्डिंग सबूत माना जाएगा: Allahabad High Court Lucknow bench
अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड की गई फोन की बातचीत को सबूत के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है। चाहे वह गैर कानूनी तरीके से ही क्यों न हासिल किया गया हो। कॉल को स्पीकर पर रखकर डिजिटल वॉयस रिकॉर्डर पर रिकॉर्ड किए जाने पर दो आरोपियों के मोबाइल फोन की बातचीत में अवरोध नहीं माना जाएगा।
क्या है मामला
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने फतेहगढ़ छावनी बोर्ड के पूर्व सीईओ महंत प्रसाद त्रिपाठी द्वारा दायर पुनीक्षण याचिका पर सुनवाई की। दरअसल, महंत राम प्रसाद त्रिपाठी की रिश्वत मामले में क्लीन चिट की मांग करने वाली उनकी डिस्चार्ज अर्जी को खारिज कर दिया गया, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही को चुनौती दी कि पूरा मामला फोन पर हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग पर आधारित था जो कि गैरकानूनी तरीके से प्राप्त हो गई थी। इसे सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
हाई कोर्ट ने याचिकर्ता की याचिका को खारिज की
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने की लखनऊ पीठ ने याचिकाकर्ता का पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कानून स्पष्ट है कि किसी साक्ष्य को अदालत इस आधार पर स्वीकार करने से इनाकर नहीं कर सकती कि यह गैरकानूनी तारीके से प्राप्त किया गया है।